बालासोर के Fakir Mohan Autonomous College में पढ़ने वाली 20 वर्षीय बी‑एड की छात्रा ने यौन उत्पीड़न की शिकायत की थी।
आरोपित विभागाध्यक्ष ने उसकी शिकायत वापस लेने के लिए दबाव डाला, प्रधानाध्यापक भी शामिल थे। ध्यान न दिए जाने पर उसने 10 जुलाई 2025 को आत्मदाह का प्रयास किया—पेट्रोल छिड़ककर कैंपस में आत्मदाह किया।
लगभग 60 घंटों तक AIIMS भुवनेश्वर में उपचार के बाद वह 14 जुलाई को दम तोड़ गई—बर्न चोटें 95% तक पहुंच चुकी थीं
विरोध प्रदर्शन का उफान
कॉलेज प्रांगण में ही छात्रों और स्थानीय लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, आरोपियों की गिरफ्तारी, फास्ट‑ट्रैक न्याय, और पीड़िता परिवार को मुआवजे की मांग उठाई ।
भुवनेश्वर के AIIMS अस्पताल के बाहर भी मोमबत्ती मार्च–पैट्रियटिक प्रदर्शन हुए—लोग “Her death must not be in vain” जैसे नारों के साथ न्याय की गुहार लगाने लगे ।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने घटना की कड़ी निंदा की और आरोपियों के खिलाफ “कठोर और अनुकरणीय” कार्रवाई का आश्वासन दिया.
उन्होंने पीड़ित परिवार को ₹20 लाख की अस्थायी आर्थिक राहत भी घोषित की.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने एक तथ्य‑परीक्षण टीम गठित की, और राज्यपाल ने विस्तृत रिपोर्ट मांगी.
राहुल गांधी ने घटना को “organised murder by system” बताया, वहीं धर्मेंद्र प्रधान ने उनकी आलोचना करते हुए इसे “सियासी राजनीति” करार दिया.
कांग्रेस ने 17 जुलाई को ओडिशा बंद का आह्वान किया.
पूर्व CM नवीन पटनायक (BJD) ने राज्यपाल से हस्तक्षेप की अपील की और मुख्यमंत्री तथा उच्च शिक्षा मंत्री की इस्तीफे की मांग की.
NCW/एनएचआरसी की कार्रवाई
NCW ने आत्मदाह की घटना को गंभीर मानते हुए तुरंत आरोपियों की गिरफ्तारी, पीड़िता को मुफ्त इलाज व मनोवैज्ञानिक सहायता देने की मांग की, साथ ही तीन दिनों में रिपोर्ट मांगी.
NHRC ने भी स्वतः संज्ञान लेकर दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तलब की.
प्रमुख मांगें और सवाल
- राज्य सरकार और विश्वविद्यालय की जवाबदेही: क्यों शिकायत दबा दी गई, जांच क्यों नहीं हुई?
- तीव्र न्याय प्रक्रिया: फास्ट‑ट्रैक कोर्ट और दोषियों को कड़ी सज़ा।
- कॉलेज/विश्वविद्यालय में महिला सुरक्षा: शिकायत निवारण प्रणाली की मजबूती व जागरूकता।
- सामाजिक और शैक्षणिक जागरूकता: आत्मदाह जैसी चरम प्रतिक्रिया को रोकने हेतु प्रोत्साहन और मानसिक सहायता।
Soumyasree की मौत सिर्फ एक आत्मदाह नहीं, बल्कि एक प्रणवेश-पूर्ण संकेत है कि सिस्टम में गड़बड़ी गंभीर है और महिलाओं की शिकायतों को उचित समर्थन नहीं मिलता। पूरे ओडिशा में उठे आवाज़ ने यह स्पष्ट किया कि जनता अब चुप नहीं रहेगी। राजनीतिक दबाव, न्यायिक हस्तक्षेप और सरकारी नियंत्रण अब ज़रूरी हो गया है ताकि किसी और की जान इस तरह बर्बाद न हो।